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हुसैनाबाद अनुमंडलीय अस्पताल की बदहालीपर उठे सवाल पत्रकार की रिपोर्टिंग से तिलमिलाए प्रभारी चिकित्सक जवाबदेही से बचते अधिकारी Questions raised about the plight of Hussainabad subdivisional hospital Doctor in charge irritated by journalist s reporting officials evade accountability

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हुसैनाबाद अस्पताल 

सब-हेडलाइन:

(1)108 एंबुलेंस सेवा में बिना ऑक्सीजन, बिना पंखे वाली गाड़ी में भेजे गए मरीज मुन्नी पासवान की हालत गंभीर

2.दंत चिकित्सक द्वारा साधारण दवाओं के लिए भी मरीज को बाहर भेजा गया, परिजनों ने उठाए सवाल

3.पत्रकार से उलझे प्रभारी चिकित्सक, बोले –आप  पर केस होना चाहिए

4. डीपीएम की जांच ने ‘दैनिक भास्कर’ की खबर को बताया अपुष्ट, लेकिन जमीनी सुधार ने खबर की पुष्टि की

5. CS पलामू का बड़ा बयान – बीपीएम सक्षम नहीं हैं स्वत: संज्ञान लेने को, थर्ड पार्टी भी नहीं कर सकती शिकायत

भूमिका: जब पत्रकारिता सच दिखाए, तो क्यों बौखलाते हैं जिम्मेदार?

झारखंड के पलामू जिले के हुसैनाबाद अनुमंडलीय अस्पताल की दुर्दशा को लेकर हाल ही में कई सवाल खड़े हुए। पत्रकारों द्वारा अस्पताल की व्यवस्थाओं की सच्चाई को जनता के सामने लाने पर एक ओर जहां प्रशासन की नींद टूटी, वहीं कुछ अधिकारी सवालों से असहज होते हुए तिलमिलाए नजर आए।

पत्रकार शेख मुजाहिद हुसैनाबादी द्वारा की गई रिपोर्टिंग ने व्यवस्था की असलियत को उजागर किया, जिसके बाद एक नहीं, कई सवालों की परतें खुलती जा रही है ।

जब पत्रकार ने उठाए सवाल, तो प्रभारी चिकित्सक हुए आग-बबूला

दिनांक 25/09/2025 को हुसैनाबाद अनुमंडलीय अस्पताल में एक मरीज के पिता अपनी 20 वर्षीय पुत्री को लेकर दंत चिकित्सक के पास पहुंचे।

दांत की सफाई के बाद कुछ दवाएं लिखी गईं, जिनमें से अधिकांश बाहर से लाने के लिए कहा गया।

परिजनों द्वारा जब सवाल किया गया कि साधारण दवाएं भी अस्पताल में क्यों उपलब्ध नहीं हैं, तो बात प्रभारी चिकित्सक डॉ. एस.के. रवि तक पहुंची।

इत्तेफाक से वहां मौजूद पत्रकार शेख मुजाहिद हुसैनाबादी से परिजनों ने अपनी पीड़ा साझा की। पत्रकार ने डॉ. रवि से बात करने के लिए फोन किया, लेकिन जवाब मिला कि वे अस्पताल में मौजूद नहीं हैं।

फोन कटते ही डॉ. रवि, बीपीएम विभूति कुमार और अन्य अधिकारी ओपीडी के रूम से निकलते दिखाई दिए ।

वहीं पर परिजनों ने दवा न मिलने की शिकायत डॉ. रवि से की। जवाब में डॉ. रवि भड़क गए और कहा:

मेरे डॉक्टर ने इलाज किया और आप लोग शिकायत कर रहे हैं? दीजिए वो पर्ची, जो दवा बाहर से लिखी गई है उसे कटवा देते है। ।

उन्होंने पत्रकार को दिखाते हुए कहा:और मरीज से पर्ची लेकर महिला डॉक्टर को बढ़ा दिया, लिखी गई दवा काटने का निर्देश देते हुए ये भी कहा कि जितनी दवा अस्पताल में है उतनी ही लिखिए। 

"यही हैं जिन्होंने RBC चैनल पर मुन्नी पासवान की खबर दिखाई है — इन पर तो केस होना चाहिए। आप ने प्रबंधन विभूति कुमार पर कैसे सवाल खड़ा कर दिया?

108 की सेवा से इनका कोई लेना देना नहीं है।

जो गलत है। आप पर तो केस होना चाहिए।

पत्रकार का जवाब: सच दिखाना अपराध है तो दोषी हूं

पत्रकार शेख मुजाहिद हुसैनाबादी ने शांत स्वर में जवाब दिया:

अगर हमने गलत कुछ दिखाया है तो आप स्वतंत्र हैं कानूनी कार्रवाई के लिए। पर जनता की समस्या दिखाना यदि जुर्म है तो हम दोषी हैं।

वहीं मौजूद DPM (जिला प्रोग्राम मैनेजर) ने प्रभारी को शांत कराते हुए कहा –

जाने दीजिए, आप अपना कार्य कीजिए ये अपना

प्रभारी के शांत होने पर महिला डॉक्टर ने मरीज की पर्ची वापस कर दिया लिखी दवाओं को बगैर काटे हुए।

क्या दंत चिकित्सक की गलती थी? या दवा की आपूर्ति में कमी?

परिजनों ने यह भी सवाल उठाया कि –

क्या अस्पताल में छोटी बीमारियों के लिए भी दवाओं की आपूर्ति नहीं होती?

क्या चिकित्सकों द्वारा प्रभारी को दवाओं की सूची नहीं दी जाती?

इन सवालों से साफ होता है कि अस्पताल में बेसिक मैनेजमेंट की कमी है, और चिकित्सकों व प्रबंधन के बीच कोऑर्डिनेशन नहीं है।

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प्रभात खबर की कतरन 

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट पर हरकत में आई प्रशासनिक मशीनरी

दिनांक 24/09/2025 को दैनिक भास्कर में एक रिपोर्ट छपी:

हुसैनाबाद अनुमंडलीय अस्पताल की स्थिति बद से बदतर, मरीज जमीन पर बैठ  इलाज का इंतजार करते हैं पीने का पानी नहीं बेड शीट नहीं मिलती मरीजों को

इस रिपोर्ट के बाद पलामू उपायुक्त श्रीमती एस. समीरा ने संज्ञान लिया और डीपीएम ने अस्पताल का दौरा किया।

लेकिन डीपीएम की जांच रिपोर्ट में इस खबर को "अपुष्ट" कहा गया।

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दंत चिकित्सक की लिखी पर्ची

पर प्रत्यक्षदर्शी और बदलाव क्या कहते हैं?

मरीजों और पत्रकार ने खुद देखा कि ओपीडी में नई बेडशीट बिछाई गई थी।

दीवारों पर रूटीन चार्ट लगाया गया, कि किस दिन किस रंग की बेडशीट होगी।

साफ हुआ कि खबर का असर हुआ, और सिस्टम ने थोड़ी देर से ही सही, लेकिन हरकत जरूर दिखाई। आरो ठीक करने वाले मिस्त्री ने भी स्वीकार किया है कि आरो बुधवार को ठीक किया गया है । 

पलामू CS का चौंकाने वाला बयान: BPM सक्षम नहीं, थर्ड पार्टी शिकायत नहीं कर सकती

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खबर के बाद दीवार पर रूटीन लिस्ट चस्पा 

पत्रकार द्वारा जब मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी (CS) डॉ. अनिल श्रीवास्तव से 108 सेवा की खराब व्यवस्था को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा:

BPM विभूति कुमार सक्षम नहीं हैं स्वयं संज्ञान लेने हेतु।

पीड़ित लिखित आपत्ति देगा तो BPM हमें फॉरवर्ड करेंगें। हमलोग उसकी जांच कर आगे कारवाई करने हेतु सरकार को अग्रसर करेंगे। आगे उन्होंने दूरभाष की बात चीत मे ये भी कहा कि

थर्ड पार्टी या समाजसेवी शिकायत नहीं कर सकते। 

यह जवाब लोकतंत्र की आत्मा - जनसुनवाई और पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।

यदि पीड़ित व्यक्ति किसी कारणवश शिकायत ना कर पाए, और यदि पत्रकार या समाजसेवी सामने आते हैं, तो उन्हें भी खारिज कर देना — क्या ये जिम्मेदारी से भागना नहीं? 

मरीज बीमार है आईसीयू में है या रेफर किए जाने की स्थिति में उसकी हालत क्रिटिकल है। तो क्या होना चाहिए?

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हेमंत सोरेन मुख्य मंत्री डॉक्टर इरफान अंसारी वा अन्य

हेमंत सोरेन सरकार के प्रयास — क्या जमीनी स्तर तक पहुँच रही हैं स्वास्थ्य सेवाएं?

झारखंड सरकार ने हाल के कल ही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई प्रयास किए:

170 नए डॉक्टरों की नियुक्ति की गई ताकि ग्रामीण और अनुमंडल स्तर पर विशेषज्ञ सेवा मिल सके।

स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवाओं की नियमित आपूर्ति, टेलीमेडिसिन सेवा, एंबुलेंस की संख्या में वृद्धि जैसे कदम उठाए गए पहले भी उठाती रही है स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी लगातार प्रयास रत दिखाई देते है । झारखंड सरकार ने कोरोना काल जैसी स्थिति में अपने राज्यों के साथ साथ अन्य राज्यों के आक्सीजन प्रदान कराती दिखी है ।

लेकिन हुसैनाबाद अस्पताल की घटना यह दिखाती है कि सरकारी नीतियों का जमीनी असर नहीं हो पा रहा है।

निष्कर्ष: जब व्यवस्था सवालों से डरे, तो जवाबदेही कैसे तय होगी?

इस पूरे प्रकरण ने स्पष्ट कर दिया कि

अस्पताल में संसाधनों के बाद भी कोई कमियों पर संज्ञान न ले तो फिर सरकार की बदनामी तय है।

मैनेजमेंट में जवाबदेही का अभाव है

चिकित्सक और प्रशासनिक अधिकारी पारदर्शिता से डरते हैं

पत्रकारों को दबाने की कोशिश की जाती है, बजाय उनके सवालों पर कार्यवाही के

लेकिन लोकतंत्र में पत्रकारिता चौथा स्तंभ है, और अगर वह अपनी जिम्मेदारी निभा रही है, तो उस पर सवाल नहीं, समर्थन होना चाहिए।

समाधान क्या है?

108 सेवा की हर गाड़ी की नियमित ऑडिट हो।

अस्पतालों में सभी आवश्यक दवाओं की सूची और उपलब्धता सुनिश्चित करना चाहिए

BPM और प्रभारी चिकित्सकों की जवाबदेही तय करना चाहिए।

पत्रकारों को धमकाने के बजाय उनसे मिले फीडबैक को सुधार का माध्यम बनाना चाहिए

जन शिकायतों को केवल "लिखित" नहीं, डिजिटल और वॉयस माध्यमों से भी लेना चाहिए सामाजिक आवाज़ों की अनदेखी न की जाय ।

अंतिम शब्द:

पत्रकारिता अगर सच दिखाए और सिस्टम उस पर तिलमिला जाए — तो तय मानिए कि चोट सही जगह लगी है।

जरूरत है कि प्रशासन पत्रकारों को प्रतिद्वंदी नहीं, सहयोगी माने। तभी जनता को न्याय और सुविधा दोनों मिल पाएगी।

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