खाद की किल्लत और कालाबाजारी से जूझते किसान: कब तक इंतज़ार करेंगे न्याय का?Farmers struggling with fertilizer shortage and black marketing: How long will they wait for justice?
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JMM नेता बबलू सिंह |
जब खेतों में धान की फसल लहलहाने लगे और किसान अपनी मेहनत की फसल को भरपूर पोषण देने के लिए खाद की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हो जाएं, तो यह स्थिति सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि किसानों के साथ एक गंभीर अन्याय का प्रतीक बन जाती है।
पलामू के हुसैनाबाद अनुमंडल क्षेत्र में इन दिनों कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिल रहा है। खेत तैयार हैं, पानी है, मेहनत है — लेकिन जो सबसे बुनियादी चीज चाहिए, यानी खाद, वह या तो बाजार में नहीं है या फिर मुनाफाखोरों की लालच की भेंट चढ़ चुकी है।
कृत्रिम किल्लत या सुनियोजित लूट?
कई किसानों का आरोप है कि कुछ खाद विक्रेता जानबूझकर कृत्रिम किल्लत का माहौल बना रहे हैं। वे गोदाम में खाद छुपाकर किसानों को घंटों लाइन में लगने पर मजबूर कर रहे हैं और जब खाद मिलती है तो वह तय कीमत से अधिक पर। इस परिस्थिति में छोटे और सीमांत किसान सबसे ज्यादा पीड़ित हो रहे हैं, जिनके पास मोलभाव की शक्ति नहीं है।
झामुमो किसान मोर्चा ने उठाई आवाज
इस संकट के बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष वशिष्ठ कुमार सिंह उर्फ बबलू सिंह किसानों के समर्थन में आगे आए हैं। उन्होंने प्रेस को संबोधित करते हुए भरोसा दिलाया कि:
जिले के हर प्रखंड में अगले एक-दो दिनों में खाद की समुचित आपूर्ति कर दी जाएगी। डीएपी और यूरिया दोनों निर्धारित दर पर ही मिलेंगे।
उन्होंने बताया कि उनकी वार्ता जिला कृषि पदाधिकारी से हुई है और इफको अधिकारियों के साथ लगातार संवाद जारी है। उन्होंने यह भी चेताया कि कालाबाजारी करने वाले विक्रेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सरकारी तय दरें:
डीएपी खाद: ₹1350 प्रति 50 किग्रा
यूरिया खाद: ₹266.50 प्रति 45 किग्रा
SDO ने खुद संभाली कमान
हुसैनाबाद SDO निरीक्षण करते हुए
खाद संकट की शिकायतें जब बढ़ने लगीं, तब वर्तमान SDO ओम प्रकाश गुप्ता ने खुद एक्शन लिया। उन्होंने हुसैनाबाद के कई खाद विक्रेताओं की दुकानों का औचक निरीक्षण किया और स्पष्ट निर्देश दिए:
खाद केवल तय दरों पर ही बेचा जाएगा। किसी भी प्रकार की कालाबाजारी या अतिरिक्त मूल्य वसूली पाई गई तो संबंधित विक्रेता कार्रवाई के दायरे में आएंगे।"
इस सक्रिय प्रशासनिक हस्तक्षेप से किसानों को थोड़ी राहत की उम्मीद जगी है, लेकिन सवाल अब भी कायम है कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आई?
प्रतिनिधियों की चुप्पी: एक गूंगी स्वीकृति?
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि खाद संकट के इस दौर में कुछ जिम्मेदार प्रतिनिधि मौन साधे हुए हैं। विशेष रूप से हुसैनाबाद पलामू व्यापार मंडल अध्यक्ष कृष्णा बैठा पर शिक्षित किसानों ने तीखी आलोचना की है।
किसानों का कहना है कि:
जो प्रतिनिधि किसानों की आवाज़ बनकर चुने गए थे, वही जब अवैध वसूली करने वाले विक्रेताओं के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाते, तो यह न सिर्फ निराशाजनक है बल्कि उनके पद की गरिमा के खिलाफ भी है।
कई लोगों का मानना है कि यदि चुने हुए जनप्रतिनिधि ही चुप्पी साध लें, तो ऐसे माफियाओं का हौसला और बढ़ता है।
क्या अब भी उम्मीद बाकी है?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह साबित किया है कि किसानों को केवल नीतियों से नहीं, बल्कि नियत से मदद की जरूरत है। खाद की किल्लत कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक ढिलाई और भ्रष्टाचार की उपज है। हालांकि बशिष्ठ सिंह और सीडीओ के हस्तक्षेप से कुछ उम्मीद जगी है, लेकिन तब तक राहत अधूरी रहेगी जब तक दोषियों पर ठोस कार्रवाई न हो।
अंत में...
हर बार चुनाव से पहले किसान "देश की रीढ़" बन जाते हैं और चुनाव के बाद "सूखे आंकड़ों" में बदल जाते हैं। अगर वाकई राज्य सरकार किसानों की समस्याओं के प्रति गंभीर है, तो यह गंभीरता सिर्फ बयानों में नहीं, जमीन पर दिखनी चाहिए।
इस बार का सवाल यह नहीं कि खाद मिलेगी या नहीं, बल्कि यह है कि क्या किसानों को उनका हक बिना संघर्ष के मिलेगा?
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