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गंगा जल से छिड़की गई कुर्सी पर बैठे डॉ. एस.के. रवि – समय ने दिया आलोचकों को करारा जवाबDr. S.K. Ravi sitting on a chair sprinkled with Gangajal - Time has given a befitting reply to the critics

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गुलदस्ता देकर स्वागत 

हुसैनाबाद/पलामू

सत्ता का चक्र चलता रहता है, पर सच्चाई और सेवा भावना की जीत समय जरूर सुनिश्चित करता है।

2021 की एक घटना आज फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार संदर्भ बदल चुका है। पलामू जिला के हुसैनाबाद अनुमंडलीय अस्पताल में डॉक्टर एस.के. रवि की सम्मानजनक वापसी न केवल एक व्यक्तिगत जीत है, बल्कि यह उन मानसिकताओं के लिए कड़ा तमाचा भी है, जिन्होंने एक पेशेवर चिकित्सक की गरिमा पर सवाल उठाने की कोशिश की थी।

पीछे मुड़कर देखें: जब गंगा जल बना था हथियार

साल 2021 में, जब डॉ. अनील कुमार सिंह पलामू सीएस हुआ करते थे। और डॉक्टर एस.के. रवि का तबादला हुआ और डॉ. रत्नेश कुमार उनके जाते ही प्रभारी चिकित्सक का कार्यभार संभाला, तब अस्पताल में एक अप्रत्याशित और निंदनीय दृश्य देखने को मिला। वह कुर्सी, जिस पर डॉ. रवि वर्षों तक कार्यरत रहे थे उस पर गंगा जल छिड़का गया था — मानो किसी अशुद्धता को धोया जा रहा हो। यह महज एक प्रतीकात्मक क्रिया नहीं थी, बल्कि एक गहरी वैचारिक दुर्भावना और व्यक्तिगत विद्वेष का प्रतीक थी। ये सब वक्त के पर्दे तले चाल थी ।

कुर्सी को 'पवित्र' करने की यह कोशिश समाज में मौजूद सांप्रदायिक सोच, जातीय द्वेष और पेशेवर ईर्ष्या का परिचायक बन गई। बुद्धिजीवियों और सामाजिक जगत से जुड़े तमाम लोगों ने उस घटना की कड़ी निंदा की। लेकिन समय चुप रहा — क्योंकि समय को जवाब देने की आदत है, वो भी ठोस तरीके से।

अब की वापसी: विश्वास, सेवा और संकल्प के साथ

जब डॉक्टर रवि गए थे 2021 का सातवां महीना था अब अगस्त 2025 में, डॉ. एस.के. रवि फिर से उसी अनुमंडलीय अस्पताल, हुसैनाबाद के उपाधीक्षक बनकर पद पर लौटे हैं। फर्क इतना जरूर है कि एक पुराने अस्पताल से निकलकर अनुमंडलीय एक नए भवन में प्रवेश कर गया है। इस बार गुलदस्तों के साथ स्वागत हुआ है। चिकित्सकों और कर्मचारियों ने खुले दिल से स्वीकार किया। ये वही स्थान है, वही कुर्सी है — फर्क है तो बस नज़रिया और समय का।

प्रभार संभालते हुए डॉ. रवि ने कहा:

हुसैनाबाद क्षेत्र के हर हिस्से से मैं वाकिफ हूं। लोगों की स्वास्थ्य समस्याएं मेरी प्राथमिकता हैं। संसाधनों की सीमाओं में रहते हुए भी मैं सेवा को सर्वोच्च रखूंगा।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी, और सभी कर्मचारियों को ईमानदारी और मानवता से कार्य करने की हिदायत दी।

एक डॉक्टर की छवि और समाज की परीक्षा

डॉ. एस.के. रवि की वापसी, उनके लिए सिर्फ़ एक पदभार नहीं, बल्कि एक अहम सामाजिक परीक्षा भी है। वह उन लोगों के बीच लौटे हैं, जिनमें से कुछ ने उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने में भूमिका निभाई थी। लेकिन पेशेवर जिम्मेदारी और सकारात्मक सोच का परिचय देते हुए, उन्होंने न सिर्फ़ इसे नजरअंदाज किया, बल्कि उन सभी को सेवा के माध्यम से उत्तर देने का संकल्प लिया है।

वर्तमान चुनौती: पद है, प्रतिष्ठा है, पर राह अब भी कठिन है

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि स्वास्थ्य विभाग में संसाधनों की कमी, स्टाफ की लापरवाही और जन अपेक्षाओं का दबाव एक चिकित्सक को लगातार चुनौती देता है। डॉ. रवि के सामने अब तीन प्रमुख चुनौती हैं:

स्वास्थ्य व्यवस्था में विश्वास बहाल करना।

कर्मचारियों में अनुशासन और जवाबदेही लाना।

पुरानी घटनाओं की छाया से बाहर निकलकर नई इबारत लिखना।

उनकी यह वापसी भले ही एक प्रतीकात्मक जीत हो, पर आगे का रास्ता उन्हें धैर्य, परिपक्वता और नेतृत्व कौशल से तय करना होगा।

समाप्ति में एक सवाल: हम कैसे समाज में जी रहे हैं?

एक डॉक्टर जो लोगों का इलाज करता है, उसी के लिए एक कुर्सी को गंगा जल से छिड़ककर 'शुद्ध' किया गया था। यह घटना समाज में मौजूद सांप्रदायिकता, जातिवाद और मानसिक दुर्बलता को उजागर करती है। क्या हम ऐसे समाज का हिस्सा बनना चाहते हैं, जहां सेवा को संदेह से देखा जाए?

डॉ. एस.के. रवि की वापसी इस सवाल का एक प्रत्यक्ष उत्तर है — "नहीं, अब नहीं। समाज बदल रहा है, और बदलाव की शुरुआत हमेशा एक और नेक सोच से होती है।

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