दगवार में लगा कैंप अंचल अधिकारी सवालों के घेरे में Camp set up in Dagwar, Hussainabad Zonal Officer under question
हुसैनाबाद अनुमंडलीय क्षेत्र अंतर्गत डंगवार पंचायत सचिवालय में 25 अगस्त को आयोजित एक कथित राजस्व कैंप अब सवालों के घेरे में है। इस कैंप की पूर्व सूचना की गोपनीयता, सीमित उपस्थिति और न्यूनतम आवेदन के आंकड़े, इसके उद्देश्य और पारदर्शिता को लेकर कई गंभीर प्रश्न खड़े कर रहे हैं।
कैसे सामने आया मामला?
दगवार पंचायत के वर्तमान मुखिया अमरेंद्र ठाकुर ने बताया कि कैंप की सूचना उन्हें दो दिन पहले हुसैनाबाद अंचल कार्यालय से फोन पर दी गई थी। इसके बाद उन्होंने सभी वार्ड पार्षदों को इसकी जानकारी दी और साथ ही यह सूचना सोशल मीडिया (विशेषकर व्हाट्सएप) पर भी साझा की गई।
मुखिया के अनुसार, इस कैंप में लगभग 60 से 70 लोग उपस्थित हुए, किंतु केवल 6 से 7 आवेदन ही भूमि विवाद या संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु जमा किए गए। यह आँकड़ा दगवार जैसे क्षेत्र के लिए असामान्य प्रतीत होता है, जहाँ आमतौर पर भूमि विवाद की भरमार होती है।
सबसे चौंकाने वाली बात – कोई फोटो या वीडियो नहीं
जब संवाददाताओं द्वारा कैंप की तस्वीरें या वीडियो की मांग की गई, तो सुबह 2 बजे से रात 11 बजे तक किसी भी प्रकार का दृश्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया। स्थानीय पत्रकारों ने भी पुष्टि की कि उन्हें इस कैंप की कोई पूर्व जानकारी नहीं थी, और ना ही कोई मीडिया कवरेज या दस्तावेज उनके पास मौजूद था।
यहां तक कि कुछ सूत्रों के अनुसार, इस कैंप की सूचना न तो एलआरडीसी को दी गई थी और न ही हुसैनाबाद अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) को। यह स्पष्ट करता है कि एक महत्वपूर्ण राजस्व संबंधी कैंप को बिना प्रशासनिक अनुमोदन के संचालित किया गया, या इसकी सूचना बेहद सीमित लोगों को ही दी गई।
प्रमुख सवाल जो उठते हैं:
क्या यह कैंप सुनियोजित था या सिर्फ खानापूर्ति?
यदि सूचना सभी वार्डों को दी गई थी, तो मात्र 6-7 आवेदन आना संदेहास्पद है।
क्या कैंप कुछ चुनिंदा लोगों के लाभ हेतु आयोजित किया गया?
जानकारों के अनुसार आमजन तक इस कैंप की खबर नहीं पहुंची, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कैंप का उद्देश्य व्यापक समस्या समाधान नहीं था।
कैंप की अनुमति प्रक्रिया में क्या पारदर्शिता थी?
बिना अनुमंडल पदाधिकारी की जानकारी के ऐसा आयोजन क्या नियमानुकूल है?
स्थानीय मीडिया और जनता को सूचना क्यों नहीं दी गई?
न कोई प्रेस विज्ञप्ति, न सोशल मीडिया पर आधिकारिक सूचना, और न ही कोई पोस्टर/बैनर – क्या यह किसी खास मकसद को पूरा करने की एक गुप्त कवायद थी?
कानूनी प्रक्रियाएं: क्या है नियम?
राजस्व विभाग के नियमानुसार:
किसी भी पंचायत स्तरीय कैंप के लिए पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है।
कैंप की सूचना सार्वजनिक रूप से दी जानी चाहिए – मसलन स्थानीय अखबारों, पंचायत भवन पर सूचना चस्पा कर, और मुनादी के जरिए।
कैंप की कार्यवाही की रिपोर्ट बनती है, जिसमें उपस्थित लोगों की सूची, प्राप्त आवेदनों की जानकारी, और समाधान विवरण होता है।
उच्च प्रशासनिक पदाधिकारियों (जैसे SDM या LRDC) को इसकी सूचना देनी होती है।
यदि इन नियमों का उल्लंघन हुआ है, तो यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक लापरवाही या नियमों की अनदेखी मानी जाएगी।
क्या यह सिर्फ "आँकड़े" भरने का खेल था?
मुखिया द्वारा प्रस्तुत 60-70 लोगों की उपस्थिति का आंकड़ा बिना किसी दृश्य प्रमाण के केवल मौखिक बयान तक सीमित है। वहीं, मात्र 6-7 आवेदन दर्शाते हैं कि या तो जनता को जानकारी नहीं दी गई, या फिर यह कैंप केवल कागजी कार्यवाही का हिस्सा था।
यदि यह प्रयास जनता के हित में था, तो इसकी जानकारी व्यापक रूप से क्यों नहीं फैलाई गई? और यदि यह केवल एक "औपचारिकता" थी, तो इसके पीछे की मंशा की जांच आवश्यक है।
निष्कर्ष:
डंगवार पंचायत में आयोजित यह रहस्यमय राजस्व कैंप शासन की पारदर्शिता, जवाबदेही और संवेदनशीलता पर कई प्रश्न खड़े करता है। इस पूरे प्रकरण में अंचल अधिकारी की भूमिका विशेष रूप से संदेहास्पद है, जिस पर उच्चस्तरीय जांच की मांग की जा रही है।
यदि सरकार की मंशा वाकई में "जन समस्याओं का समाधान" और "राजस्व सुधार" है, तो ऐसे आयोजन की पारदर्शिता और जन सहभागिता अनिवार्य है। अन्यथा यह जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाने वाला एक और प्रशासनिक तमाशा बनकर रह जाएगा।
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