हुसैनाबाद में ताबूत-ए 'अठारह बनी हाशिम' के साथ कर्बला के शहीदों की याद में ग़मगीन फिज़ा नौहों और मर्सियों से गुंजा इमामबाड़ाThe Imambara reverberated with mournful atmosphere and noha and marsias in memory of the martyrs of Karbala with the coffin of eighteen Bani Hashim in Hussainabad
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हुसैनाबाद न्यूज़ |
हुसैनाबाद,– कर्बला के उन अठारह हाशिमी शहीदों की याद में हुसैनाबाद की फिज़ा ग़म में डूबी रही, जब अनजुमन फरोग ए अज़ा और शियाने हुसैनाबाद के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार की रात सदर इमामबाड़ा, वक्फ वासला बेगम में "ताबूत-ए अठारह बनी हाशिम", अलम-ए-पाक और जुलजनाह की शबीह निकाली गई। यह आयोजन न केवल श्रद्धांजलि था, बल्कि कर्बला के शहीदों की याद को नई पीढ़ी के दिलों तक पहुँचाने की एक भावुक कोशिश भी।

कर्बला की शहादत: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का पुनर्स्मरण
बताते चलें कि 10वीं मुहर्रम को इमाम हुसैन (अ) और उनके 72 साथियों को कर्बला में शहीद कर दिया गया था। इन शहीदों में अधिकतर बनी हाशिम, यानि पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.) के खानदान से ताल्लुक रखते थे। इसीलिए यह ताबूत "अठारह बनी हाशिम" उन विशेष हाशिमी शहीदों की प्रतीकात्मक याद है, जिन्हें बगैर कफ़न व जनाज़ा दफ़न कर दिया गया था।
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मजलिस और खिताब: मौलाना सैय्यद शाहिद रिज़वी का दिल छू लेने वाला बयान
इस शोकसभा को मौलाना सैय्यद शाहिद रिज़वी (मुंबई) ने खिताब किया और कहा:
हम आज इस कार्यक्रम के जरिए उन मजलूमों को याद कर रहे हैं जिन्हें कफ़न भी नसीब न हुआ। आज हम उनकी जनाज़े की शबीह को अदब से कंधा देकर यह अर्झ कर रहे हैं कि मौला! अगर हम कर्बला में होते तो यही एहतमाम करते।
पवित्र माहौल में हुई आयतों की तिलावत, मर्सिया और नौहा मातम का आयोजन
कार्यक्रम की शुरुआत कुरआन की आयते करीमा से हुई, जिसके बाद नौहा, मातम और मर्सिए का सिलसिला चला:
अनजुमन यादगारें हुसैनी (यूपी) ने अपने मखसूस अंदाज में दिल छूने वाला नौहा और मातम पेश किया।
मर्सिया की पेशकश सैय्यद अली हसन वा हमनवां ने की, जिनकी सधी हुई आवाज़ ने माहौल को और भी रंजगीन बना दिया।
शायर शारिब अब्बास ने अपनी शायरी के ज़रिए अहलेबैत के ग़म को बेहद असरदार ढंग से पेश किया, जिसे श्रोताओं ने भावुकता से सुना और सराहा।
निज़ामत की ज़िम्मेदारी जाहिद कानपुरी ने निभाई, जिन्होंने पूरी संजीदगी और रवानी के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
संचालन और सहयोग: हर शख्स ने निभाया अपना किरदार
प्रोग्राम के संचालन में मौलाना सैयद सम्श तबरेज साहब ने विशेष भूमिका निभाई और पूरे आयोजन को संयम और मर्यादा के साथ संपन्न कराया।
अनजुमन फरोग ए अज़ा के तमाम मेंबरों ने एकजुट होकर कार्यक्रम को सफल बनाने में भरपूर सहयोग दिया।
हज़ारों की संख्या में अज़ादारों की शिरकत, फिज़ा में गूंजता रहा “या हुसैन
हुसैनाबाद के साथ-साथ हैदरनगर, झरगड़ा, मानडर, रोहतास आदि स्थानों से भारी संख्या में अज़ादार पहुंचे। सभी ने मिलकर जनाबे बिबी फातिमा (स.अ) को उनके जिगर के टुकड़ों का पुरसा दिया। माहौल पूरी तरह ग़म में डूबा रहा और “या हुसैन” की सदाएं फिज़ा में गूंजती रहीं।
बेहतरीन इंतज़ाम: लाइट, साउंड और साज-सज्जा से बना ग़मगीन माहौल
साबिर हुसैन, बिनते हुसैन और शब्बीर हुसैन ने इमामबाड़ा में लाइट और साउंड का बेहद उम्दा इंतज़ाम किया।
इमामबाड़ा की साज-सज्जा ऐसी थी कि हर कोना इमाम हुसैन (अ) के ग़म में डूबा नजर आया। जुलजनाह की शबीह और अलम-ए-पाक की सजावट ने सबकी आंखों को नम कर दिया।
जनसेवा का अनूठा दृश्य: सबीलें, शरबत और लंगर की मुकम्मल व्यवस्था
अंजुमन की ओर से आमजन के लिए पानी, शरबत, और खाने-पीने के सामान की विशेष व्यवस्था की गई। सबीलों और खाद्य स्टॉल्स के माध्यम से अज़ादारों की सेवा की गई, जो एक मिसाल पेश करती है इंसानियत और खिदमत की।
निगरानी और मार्गदर्शन में भी रहा अनुशासन और श्रद्धा का मेल
इस विशेष आयोजन की निगरानी मुतवल्ली सैय्यद तकी हुसैन रिज़वी साहब ने की, वहीं पूर्व मुतवल्ली हसनैन जैदी साहब की भी गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को और पुख्ता बना दिया।
हर पहलू से सफल रहा आयोजन, भावुकता और श्रद्धा का अनुपम संगम
इस पूरे कार्यक्रम ने यह साबित कर दिया कि कर्बला की शहादत सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि एक जिंदा सबक है, जो हर दौर में इंसाफ, सच्चाई और कुर्बानी का पैग़ाम देता रहेगा। हुसैनाबाद ने इस आयोजन के ज़रिए यह दिखा दिया कि इमाम हुसैन (अ) की याद न केवल दिलों में ज़िंदा है, बल्कि हर साल और ज्यादा मजबूती से गूंजती है।
✍️ रिपोर्ट: विशेष संवाददाता
स्थान: सदर इमामबाड़ा, हुसैनाबाद (झारखंड)
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