पलामू के किसान भटक रहे हैं यूरिया के लिए खुलेआम हो रही कालाबाज़ारी: कमलेश सिंहFarmers of Palamu are wandering, black marketing of urea is happening openly: Kamlesh Singh
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पलामू: हुसैनाबाद
पलामू के मेहनतकश किसान आज भी अपने हक़ के लिए दर-दर भटक रहे हैं। खेतों को सींचने के लिए जिस यूरिया की ज़रूरत है, वह या तो उपलब्ध नहीं है, या फिर बाजार में तय मूल्य से कहीं अधिक दामों पर बेचा जा रहा है। यह गंभीर आरोप लगाए हैं झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री कमलेश सिंह ने, जिन्होंने इस मुद्दे पर जिला प्रशासन और कृषि विभाग की कार्यशैली पर सीधा सवाल उठाया है।
कमलेश सिंह के अनुसार, अप्रैल से अगस्त 2025 के बीच पलामू जिले में कुल 8179 मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध कराया गया, लेकिन इसके बावजूद किसान लाभ से वंचित हैं। उन्होंने इसे प्रशासन की नाकामी नहीं, बल्कि मिलीभगत का नतीजा" बताया है।
हकीकत यह है कि प्रशासन की शह पर यूरिया की कालाबाज़ारी खुलेआम चल रही है।
— कमलेश सिंह, पूर्व मंत्री
पूर्व मंत्री ने कहा कि स्टॉकिस्ट सरकारी दरों की अनदेखी कर खुदरा व्यापारियों को ऊँचे दाम पर यूरिया बेच रहे हैं, और खुदरा व्यापारी वही महंगी खाद किसानों को बेचने को मजबूर हैं। इसका सीधा असर गरीब और सीमांत किसानों पर पड़ रहा है, जो खेती के लिए पहले से ही संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।
सांसद के पत्र की सराहना, लेकिन...
कमलेश सिंह ने इस संकट पर पलामू सांसद विष्णु दयाल राम द्वारा की गई पहल की सराहना की। सांसद ने केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर पलामू में पर्याप्त यूरिया उपलब्ध कराने की मांग की है।
हालांकि, कमलेश सिंह का मानना है कि केवल यूरिया की "उपलब्धता बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं है"। जरूरी यह है कि यह किसानों तक सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर पहुँचे, और साथ ही इस गोरखधंधे में लिप्त सरकारी अफसरों, स्टॉकिस्टों और व्यापारियों की निष्पक्ष जांच कर उन्हें दंडित किया जाए।
किसानों का धैर्य जवाब दे रहा है...
पूर्व मंत्री ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने जल्द हालात पर काबू नहीं पाया, तो किसानों का आक्रोश एक बड़े जनांदोलन में बदल सकता है। उन्होंने कहा कि पलामू की धरती मेहनतकश किसानों की है और उनकी आवाज़ को लंबे समय तक दबाया नहीं जा सकता।
यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो ज़िम्मेदार केवल किसान नहीं, बल्कि प्रशासन होगा।
— कमलेश सिंह
विश्लेषण:
इस मुद्दे ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि किसानों की समस्याएं केवल प्राकृतिक आपदा या तकनीकी कारणों से नहीं, बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार और उदासीनता से भी उपजती हैं।
ब्लॉगर के रूप में यह सवाल उठाना ज़रूरी है — आख़िर कब तक देश का अन्नदाता सिस्टम की लापरवाही का शिकार बनता रहेगा?
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