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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 INDIA गठबंधन की हार के असली कारण एक निष्पक्ष विश्लेषण Bihar Assembly Elections 2025 An unbiased analysis of the real reasons behind the defeat of the INDIA alliance

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025


RBC Channel Exclusive Report

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राजनीतिक हलकों में नई बहसें छेड़ दी हैं।
जहां राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से लेकर EVM चुनाव आयोग,SIR तक कई तरह की शंकाएँ जताई, वहीं जनता के व्यवहार और गठबंधन की रणनीतिक कमियों पर बहुत कम चर्चा हुई।

निष्पक्ष विश्लेषण बताता है कि INDIA गठबंधन की हार एक दिन में नहीं हुई इसके संकेत चुनाव घोषणा से काफी पहले दिखने लगे थे।

1. सीट बंटवारा में देरी: शुरुआत में ही भ्रम और कलह का माहौल


INDIA गठबंधन की सबसे बड़ी गलती सीट शेयरिंग को लेकर अनिश्चितता और देरी रही।
टिकट बंटवारे में लगातार देरी

JMM को पर्याप्त हिस्सेदारी न देना

छोटे दलों की उपेक्षा

इससे जनता के बीच यह संदेश गया कि गठबंधन अंदरूनी तौर पर असहमतियों से जूझ रहा है। चुनाव से ठीक पहले की यह कन्फ्यूजन वोटरों में अविश्वास का कारण बनी।
राजनीति में पहला प्रभाव ही निर्णायक प्रभाव होता है—गठबंधन यहाँ पिछड़ गया।

2. AIMIM से गठबंधन न करना: मुस्लिम वोट-बैंक पर असर


AIMIM से दूरी बनाकर रखने का निर्णय न्योता देने के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं के बड़े हिस्से में नकारात्मक संदेश छोड़ गया।
इतिहास गवाह है—
लालू प्रसाद यादव द्वारा रामविलास पासवान के प्रस्ताव पर मुस्लिम मुख्यमंत्री के नाम पर अनिच्छा दिखाने की पुरानी बातें पूर्व की बाते ज़हन में फिर उठने लगीं।
इससे मुस्लिम समुदाय में यह धारणा मजबूत हुई कि RJD नेतृत्व दोहरा रवैया अपनाता है

सामने सेक्युलर चेहरा, पीछे राजनीतिक सौदेबाज़ी।

AIMIM को साथ न लेने से ये भावनाएँ और भी गहरी हो गईं, जिसका लाभ NDA और अन्य दलों को मिला।

3. ममता बनर्जी और JMM जैसे सहयोगियों का चुनाव पर चुप रहना


राष्ट्रीय स्तर के बड़े चेहरों विशेषकर ममता बनर्जी, JMM नेतृत्व—का बिहार अभियान से दूर रहना भी एक संकेत था।
लोगों में यह संदेश गया कि गठबंधन एकजुटता के साथ नहीं लड़ रहा है।
यह भी INDIA ब्लॉक की कमजोर सामूहिक इच्छाशक्ति को दर्शाता है।

4. नीतीश कुमार के सामाजिक-कल्याण मॉडल की गहरी पकड़


जेडीयू ने वर्षों से महिलाओं, छात्राओं और ग्रामीण परिवारों के बीच मजबूत सामाजिक पूंजी तैयार की है—

लड़कियों के लिए शिक्षा योजनाएँ

महिला समूह

साइकिल/पोशाक योजनाएँ

बिजली और सड़क सुधार
बुजुर्गों के लिए पेंशन बढ़ाना
उसपर से NDA का हिस्सा होते हुए भी मुस्लिम सीट बंटवारा करना

और हाल के दिनों ने दस हजार मास्टर स्टॉक जैसी नई पहल

तेजस्वी यादव और गठबंधन ने इन कार्यक्रमों को गंभीरता से नहीं आँका।
गाँव-देहात में यह धारणा बनी कि
काम तो नीतीश ने करके दिया ही है।

महिला वोटरों ने निर्णायक भूमिका निभाई—और वे बड़ी संख्या में NDA की ओर झुकीं।

5. बीजेपी का संगठित चुनावी ढांचा: रणनीति + माइक्रो-मैनेजमेंट


भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका संगठन और जमीनी कार्यकर्ता तंत्र है।
बूथ प्रबंधन
सोशल मीडिया

लाभार्थियों से सीधे संपर्क
चुनाव एजेंडा का मजबूत नियंत्रण

इसके मुकाबले कांग्रेस अपनी परंपरागत कमजोरी—संगठनात्मक ढील—से अब भी उबर नहीं सकी।
INDIA गठबंधन का संयुक्त कैडर भी बीजेपी-जेडीयू के मुकाबले बहुत कमजोर रहा।

6. जन स्वराज्य जैसी नई पार्टियों का उभरना


बीजेपी समर्थित या उसके प्रभाव में आने वाली नई छोटी पार्टियों ने
सरकार से नाराज

योजनाओं से वंचित

जातीय समीकरणों से इंडिया गठबन्धन से असंतुष्ट लोगों
को अपने तरफ खींचा।
इन पार्टियों ने  गठबंधन का मत विभाजन कर दिया और कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया।

7. कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी: गठबंधन का सबसे कमजोर स्तंभ


कांग्रेस को सीटें तो मिलीं, लेकिन
बूथ स्तर पर कमजोर उपस्थिति

कार्यकर्ताओं का कम उत्साह
प्रचार में पिछड़ना

स्थानीय नेतृत्व का अभाव ने गठबंधन की कुल ताकत को सीमित कर दिया।
गठबंधन केवल सीटें जोड़ने से नहीं मजबूत होता
संगठन जोड़ने से होता है।

कांग्रेस यह भूमिका निभाने में विफल रही।

8. NDA का एकजुटता का नैरेटिव बनाम INDIA का कलह का नैरेटिव


जहाँ NDA ने खुद को एकजुट और स्थिर विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया, वहीं INDIA गठबंधन

टिकट विवाद

बयानबाज़ी

रणनीतिक असहमति

की वजह से अस्थिर दिखाई दिया।
चुनाव में धारणा की राजनीति बेहद शक्तिशाली होती है—और इस चुनाव में NDA यह लड़ाई स्पष्ट रूप से जीत गया।

निष्कर्ष: हार की कहानी वोटरों ने लिखी, मशीनों ने नहीं
INDIA गठबंधन की हार में

रणनीति,

संगठन,

चुनाव प्रबंधन,

और जनभावना

इन सभी का योगदान रहा।
बीजेपी की जीत मशीनों या शिकायतों से नहीं—बल्कि कठोर संगठनात्मक तैयारी, जाती वा एक धार्मिक लाभार्थी राजनीति और विपक्ष की कमज़ोरियों से बनी।

BJP ने

अपना लक्ष्य तय किया,

नैरेटिव सेट किया,

और उसे जमीनी स्तर तक पहुंचाया।

वहीं INDIA गठबंधन ने

देरी की,

निर्णय टाले,

और एकजुटता नहीं दिखाई।

लोकतंत्र में जीत हार का फैसला अंततः मतदाता ही करते हैं—और 2025 में बिहार के मतदाताओं ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया।

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