एक छत-एक चूल्हा, एक मिसाल: अब्बास खान और उनके भाइयों की संयुक्त और पारिवारिक ज़िंदगीOne roof, one stove, one example: The joint and family life of Abbas Khan and his brothers
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एक परिवार मज़बूत परिवार |
हैदर नगर
जब आज का समाज जायदाद के झगड़ों, स्वार्थ और अहम की दीवारों में बंटता जा रहा है, ऐसे समय में झारखंड के पलामू ज़िले के हैदरनगर थाना क्षेत्र के भाई बिगहा गांव से एक रोशनी भरी मिसाल सामने आई है, जो प्यार, एकता और भाईचारे का संदेश देती है।
यह कहानी है अब्बास खान और उनके दो छोटे भाइयों — बब्लू खान और जावेद खान की, जो अपने-अपने बच्चों, नातियों और पोतों के साथ आज भी एक ही चूल्हे से खाना बनाते हैं और एक ही दस्तरख़ान पर बैठकर हँसी-खुशी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। यह परिवार न सिर्फ घरेलू जीवन में एकजुट है बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी एक-दूसरे का पूरा साथ निभा रहा है।
अब्बास खान की शादी 14 अप्रैल 1979 को हुई थी। उनके दोनों भाई भी शादीशुदा हैं और सभी अपने परिवारों के साथ एक ही घर में रहते हैं। उनके पिता, स्वर्गीय लतीफ़ खान साहब, जिनका निधन 1998 में हुआ था, उन्होंने ने
अपने बेटों में जो नैतिक मूल्य, एकता और संयुक्त परिवार की नींव रखी थी, वह आज भी मजबूती से कायम है।
एक और खास बात यह है कि ये तीनों भाई, बड़े भाई अब्बास खान की अगुवाई में एक साथ कारोबार भी कर रहे हैं। सभी भाई बड़े भाई की सलाह को अहमियत देते हैं और उनके सुझावों पर अमल करके न सिर्फ अपने परिवार को बल्कि कारोबार को भी सफलता की राह पर ले जा रहे हैं।
आज के दौर में जब अधिकतर परिवार धन-दौलत के लालच में बिखर रहे हैं, अब्बास खान का परिवार एक रौशन चिराग की तरह है, जो सिखाता है कि अगर दिलों में मोहब्बत हो, नीयत साफ हो और सभी एक-दूसरे के सहारे बनें, तो दुनिया की कोई ताक़त आपको हरा नहीं सकती।
यह परिवार आज के समाज के लिए एक आइना है — जिसमें हर व्यक्ति को देखना और सीखना चाहिए कि असली खुशी, असली ताक़त और असली कामयाबी "एकता" में ही है।
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