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| वर्तमान विधायक संजय यादव वा पूर्व विधायक कमलेश कुमार सिंह |
हुसैनाबाद में प्रस्तावित अनुमंडलीय कारागार (सब-जेल) अब एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि सिस्टम की विफलता और राजनीति की प्राथमिकताओं पर बड़ा सवाल बन चुका है। सरकार के हालिया जवाब के बाद यह लगभग साफ हो गया है कि इस सब-जेल के बनने की उम्मीद फिलहाल बेहद धुंधली हो चुकी है।
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| सब जेल की दीवार |
विधानसभा में 08 दिसंबर 2025 को सरकार ने स्वीकार किया कि जिस भूमि पर सब-जेल का निर्माण प्रस्तावित था, वह तकनीकी रूप से अनुपयुक्त है। सुरक्षा मानकों के अनुरूप न होने, चहारदीवारी के कोणीय ढांचे, भूमि के बीच से गुजरती सड़क और अतिरिक्त छह एकड़ जमीन की जरूरत ने पूरी परियोजना को ठप कर दिया है।
जब जमीन ही गलत थी, तो 1.17 करोड़ की दीवार क्यों बनी?
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| शिलान्यास समारोह की झलक कमलेश कुमार द्वारा |
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2020 में लगभग 1.17 करोड़ रुपये की लागत से सब-जेल की चहारदीवारी का टेंडर जारी किया गया और 50 प्रतिशत से अधिक कार्य भी पूरा कर लिया गया।
अब सरकार खुद कह रही है कि उसी जमीन पर जेल बन ही नहीं सकती। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है
* बिना पुख्ता तकनीकी जांच के स्वीकृति किसने दी?
* खर्च हो चुकी सरकारी राशि की जिम्मेदारी कौन लेगा?
* क्या यह सिर्फ लापरवाही है या फिर सुनियोजित चुप्पी?
पूर्व विधायक कमलेश कुमार सिंह: शुरुआत की, पर मंज़िल नहीं मिली
हुसैनाबाद में सब-जेल की नींव रखने का श्रेय पूर्व विधायक कमलेश कुमार सिंह को जाता है। एनसीपी विधायक रहते हुए उन्होंने न सिर्फ इस परियोजना को क्षेत्र में लाने की पहल की, बल्कि चहारदीवारी का शिलान्यास भी किया, जिसकी झलक आज भी वीडियो फुटेज में मौजूद है।
हालांकि, पार्टी बदलकर बीजेपी में जाने के बाद उन्हें चुनावी हार का सामना करना पड़ा और उनका यह “विकास सपना” अधूरा रह गया।
वर्तमान विधायक संजय कुमार सिंह यादव: सवाल उठे, पर जवाब नहीं
मौजूदा विधायक संजय कुमार सिंह यादव ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया, लेकिन पक्ष में रहते हुए भी वे सब-जेल को लेकर ठोस नतीजा नहीं दिला सके।
सरकार के इनकार के बाद स्थानीय लोगों में यह चर्चा तेज है कि क्या मौजूदा विधायक अपनी ही सरकार में हुसैनाबाद की आवाज़ प्रभावी ढंग से रख नहीं पा रहे हैं?
राजनीति की कीमत विकास क्यों चुकाए?
राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी तैर रहा है कि राजद और जेएमएम के बीच बढ़ी दूरी का असर क्या अब हुसैनाबाद–हरिहरगंज पर पड़ रहा है?
बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन की खटास कहीं झारखंड में विकास कार्यों की अनदेखी का कारण तो नहीं बन रही?
निष्कर्ष:
आज हुसैनाबाद में करोड़ों की चहारदीवारी खड़ी है, लेकिन उसके भीतर बनने वाली जेल का भविष्य अंधेरे में है।
कमलेश कुमार सिंह की रखी नींव पर संजय कुमार सिंह यादव ईंट रख नहीं पा रहे साफ दिख रहा , एक के बाद एक योजनाएं धरातल से नीचे जाती दिखाई दे रही ।
कुछ दिन पूर्व ही वर्तमान विधायक ने कोषागार निर्माण का मामला उठाया था वो भी सरकार ने उपयुक्त नहीं समझा। साफ मना कर दिया था।
अगर जल्द ही वैकल्पिक भूमि, स्पष्ट योजना और जवाबदेही तय नहीं हुई, तो यह सब-जेल भी हुसैनाबाद के लिए एक और अधूरी राजनीतिक कहानी बनकर रह जाएगी।
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